सुलूक की सात वादियों की तमसिली कहानी
हज़रत ख़्वाजा फ़रीदुद्दीन अतर ने अशआर में एक अलंकारिक मसनवी लिखी है। इस मसनवी के आख़िर में उन्होंने पक्षियों के साम्राज्य के बारे में एक काल्पनिक विषय का वर्णन किया है। विषय इस प्रकार है: पक्षी एक जगह इकट्ठे हुए हैं और वे आपस में सोचते हैं कि दुनिया में कोई भी देश राजा के बिना समृद्ध नहीं हो सकता, इसलिए पक्षी भी अपने राजा के बिना नहीं रह सकते, और वे अपने राजा को समीरग मानते हैं। उसे खोजने के लिए, सभी पक्षी बाज का मार्गदर्शन चाहते हैं। बाज अपना वादा पूरा करता है। वह पक्षियों को समीरग तक ले जाएंगे, लेकिन तभी जब उनमें रास्ते के सभी कष्टों को सहने की शक्ति होगी। इन पक्षियों में तीस पक्षी ऐसे हैं जिनकी खोज सच्ची है। उन्हें साधक कहते हैं। कष्टों को सहने वाले साधक ही असल में साधक हैं। साधक का मार्ग अनुशासन और संघर्ष का मार्ग है। साधक के मार्ग में सात घाटियाँ हैं। पहली घाटी तब तक खोज और तलाश है जब तक कोई न पा ले यदि साधक अपने अंदर इच्छा का विकास नहीं करता तो वह पूर्णता के मार्ग पर सफल नहीं हो सकता। प्रेम की मंजिल साधक की दूसरी मंजिल है। इसलिए साधक को मंजिल से इतना लगाव होना चाहिए कि वह मंजिल पर ही चले। मार्ग पर बिना किसी भय के चलना चाहिए और मार्ग की कठिनाइयों से नहीं डरना चाहिए। आचरण की तीसरी घाटी ज्ञान की घाटी है, जो प्रत्येक साधक की बुद्धि और विवेक के आकलन के अनुसार है। आत्मनिर्भरता, जो नकार की घाटी है इस घाटी में साधक को संसार और उसमें मौजूद हर चीज़ से स्वतंत्र होना पड़ता है। जो व्यक्ति संसार की इच्छाओं का कैदी है, वह इस घाटी तक नहीं पहुँच सकता। साधक की दृष्टि बहुत ऊँची होती है। उसकी नज़र में संसार ऐसा ही है बोर्ड पर बनाया गया चित्र और फिर मिटा दिया गया। आचरण की पांचवीं घाटी एकेश्वरवाद की घाटी है। यहां पहुंचकर साधक अगर इस स्थिति को पहचान लेता है तो उसे अनेकता में एकता दिखाई देगी। वह हर चीज में अल्लाह सर्वशक्तिमान को देखने लगता है। मन और शरीर के बीच का अंतर पूरी तरह से दूर हो जाता है। आचरण की छठी घाटी में साधक निस्वार्थता और भ्रमण की स्थिति में भटकता है। यहाँ उसे पता चलता है कि कब यदि उसका सारा ज्ञान सीमित हो और वह अज्ञानी हो, तो वह लीन हो जाता है और अपने सुख से भी विमुख हो जाता है। सातवां स्थान विनाश का स्थान है। यहाँ आकर साधक की भौतिक इच्छाएँ, अहंकार और स्वार्थ सभी नष्ट हो जाते हैं। इस तीर्थयात्रा में वह स्वयं को खो देता है और एकता की दुनिया का हिस्सा बन जाता है और सत्य को प्राप्त करता है। और सत्य यह है कि इस विनाश के माध्यम से वह अस्तित्व प्राप्त करता है।
سلوک کی سات وادیوں کی تمثیلی کہانی
حضرت خواجہ فرید الدین اتار نے اشار مے ایک تمثیلی مثنوی لکھی ہے اس مثنوی کے اخر مے پرندوں کے بادشاہت کے بارے مے ایک خیالی مضمون بیان کیا ہے وہ مضمون یوں ہے ک ایک مکام پر پرندے جما ہیں اور وہ مل کر ے سوچتے ہیں ک دنیاں مے کوئی ملک بادشاہ کے بگیر خوشحال نہیں رہ سکتا اس لئے پرندے بھی اپنے بادشاہو کے بغیر زندگی نہیں گزار سکتے اور وہ اپنا بادشاہ سمیرغ کو خیال کرتے ہیں اسکو تلاش کرنے کے لئے تمام پرندے ہد ہد کی رہنمائی حاصل کرتے ہیں ہد ہد ے وادا کرتا ہے وہ پرندو کو سمیرغ تک پہنچا دیگا مگر راستے کی سب صعوبتے برداست کرنے کے لئے اگر وہ قوّتے برداست رکھتے ہیں ان پرندوں مے تیس پرندے ایسے ہوتے ہیں جنکی طلب صادک ہوتی ہے انکو سالک کہا جاتا ہے سالک جو صعوبتے برداست کرتے ہیں وہ حقیقت مے آرفو کے ریاضتے اور مجاہدے ہیں سالک کی راہے سلوک مے سات وادیاں ہوتی ہیں پہلی وادی طلب وا جستجو ہے جبتک کوئی سالک اپنے اندر طلب پیدا نہ کریگا وہ کمال کے راستے پر کامزن نہیں ہو سکتا عشق کی منزل سالک کی دوسری منزل ہے اسکے لئے سالک کو منزلے مقصود سے اتنی دلبستگی ہو ک راہے طریقت مے بلا اندیشہ چل نکلے اور راستے کی تکلیفو سے نہ ڈرے معرفت سلوک کی تیسری وادی ہے معرفت ہر سالک کے عقل و خرد کے اندازے کے متابِک ہوتی ہے استغنا جو نفی وادی ہے اس وادی مے سالک کو دنیا وما فیها سے بے نیاز ہونا پڑتا ہے جو شخص خواہشات دنیا کا اسیر ہو اس وادی تک نہیں پھچ سکتا سالک بلند نظر ہوتا ہے اس کی نظر مے دنیا اس نقش کے مانند ہے جو کسی تختی پر بنا کر مٹا دیا جاتا ہے سلوک کی پاچوی وادی توحید کی وادی ہے یہاں پہچ کر اگر سالک اس مکام کو پہچان لیتا ہے تو اسے کثرت مے وحدت نظر آنے لگتی ہے وہ ہر شۓ مے الله تعالیٰ کا مشاہدہ کرتا ہے من و تو کا امتیاز بلکل اٹھ جاتا ہے سلوک کی چھٹی وادی مے سالک بے خودگی اور آوارگی کی حالت مے گھومتا رہتا ہے یہاں اسکو جب ے معلوم ہوتا ہے ک اسکی ساری معلومات محدود تھی اور وہ محج لا علم تھا تو وہ مہوت ہو کر رہ جاتا ہے یہاں تک ک اپنی مستی سے بھی بیگانا ہو جاتا ہے ساتواں مکام فنا کا ہے یہاں آکر سالک کی جسمانی خواہش تکبّر اور خود پرستی سب کچھ جائل ہو جاتا ہے اس لحاج سے وہ اپنے آپ کو کھوکر عالم وحدت کا ایک حصّہ بن جاتا ہے اور واصل حق ہو جاتا ہے اور حقیقت ے ہے کی اس فنا سے اسکو بقا حاصل ہو جاتی ہے
